( पंजी. यूके 065014202100596 )
नमो दुर्गतिनाशिन्यै मायायै ते नमो नमः, नमो नमो जगद्धात्र्यै जगत कर्ताये नमो नमः,
नमोऽस्तुते जगन्मात्रे कारणायै नमो नमः, प्रसीद जगतां मातः वाराह्यै ते नमो नमः ।
श्री हनुमान महात्मय

श्री हनुमान तत्व वेदों से आता है। श्री हनुमान ऊर्जा, चिर यौवन, अतुल्य पराक्रम, भक्ति, श्रद्धा, बल, विवेक, अपूर्ण साहस, यश, सेवाभाव, समर्पण, धैर्य, चतुराई जैसे अनेक गुणों के द्योतक हैं। वे गुणों के सागर है तथा संकट मोचन हैं। हनुमान जी प्रतापी होते हुए भी विनम्र हैं। वे सदैव हाथ जोड़े रहते हैं। हनुमान तत्व कितना व्यापक व गूढ़ है इसके ऊपर ज्ञानियों द्वारा लिखित गीता प्रैस का हनुमान अंक अद्भुत है। महर्षि वाल्मीकि ने त्रेता युग में अवतरित श्री राम की कथा रामायण नामक ग्रंथ में लिखी। इस कथा की काव्यात्मक व्याख्या तुलसीदास जी ने अवधी में की, जिसे रामचरित मानस कहा जाता है। श्री राम की यह कथा एक ऐतिहासिक महाकाव्य है अर्थात यह सत्य कथा है न कि कहानी या मिथक। अनेक सिद्धियों एवं दिव्य रचनाओं के चलते तुलसीदास जी को संत शिरोमणि कहा जाता है। उन्होंने अनेक अलौकिक स्तुतियां भी लिखी है और श्री हनुमान चालीसा भी उन्हीं की रचना है। हनुमान चालीसा एक अलौकिक कुंजी है। इसमें आये एक - एक शब्द की बड़ी महिमा है। यह अनेक ग्रंथों का सार है इसलिए हनुमान चालीसा के शब्द अमृत वर्षा की भांति हैं। लोकप्रिय हनुमान चालीसा में श्री राम के महानतम भक्त हनुमान जी के गुणों व कार्यों का संक्षिप्त वर्णन चालीस चैपाइयों में दिया गया है। हनुमान चालीसा का पाठ व हनुमान का स्मरण, बल, धैर्य, निर्भयता, साहस, शौर्य, बुद्धि व विवेक आदि प्रदान करता है। वस्तुतः वे सभी गुण मनुष्य में भी अंश रूप में विधमान हैं जो श्री हनुमान में हैं। मनुष्य में छुपी क्षमताओं (hidden dapabolities ) को प्रखर व प्रेरित (ignite) करने का तत्व ही हनुमत तत्व है और हनुमान की उपासना यही करती है। हनुमान जी की अनेक असंभव उपलब्धियां हैं। वे शरीर को स्वस्थ रखने की प्रेरणा हैं। वे विधार्थियों, खिलाड़ियों और बड़े लक्ष रखने वाले की दृढ़ प्रतिज्ञा तथा प्रेरणा स्रोत हैं। हनुमान वह वृत्ति है जो रावण वृत्ति को रोकती है। यदि हमारे अन्दर राक्षसी वृत्ति जाग जाए तो उसे नष्ट करती है। हनुमान वृत्ति शैतान से सामना करने की शक्ति देती है। रावण की भांति अहंकार तथा पदका दुरूपयोग न करने की प्रेरणा देती है। हनुमान जी सामाजिक मूल्यों का पोषण करते हैं। उनसे भय भी कांपता है, वे रखवाले हैं। उन्हें रघुपति ने कंठ लगाया था। हनुमत तत्व बुरी आत्माओं के प्रकोप से भी बचाता है तथा पीड़ा हरता है। हनुमान जी को रुद्रावतार माना गया है तथा वे पनवसुत हैं, महाबली हैं, बजरंगी हैं, चिरंजीवी, योगी तथा संकट मोचन हैं। चालीसा में चालीस अलौकिक चैपाइयां के अतिरिक्त दो दोहे प्रारंभ में आते है। जो संकल्प की भांति हैं जिसमें श्री राम को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रूपी चार प्रकार की कृपा करने वाले बताया है-जो दायक फल चारि। और इसमें पवन सुत का स्मरण होता है जो बल, बुद्धि, विद्या देते हैं तथा दुःख व समस्याओं का निदान करते हैं। अंतिम दोहे में श्री राम, श्री लक्ष्मण, मां सीता सहित श्री हनुमान से हृदय में बसने की प्रार्थना हुई है।
रामचरित मानस के सुदंरकांड का पारायण बहुत लोकप्रिय है। वास्तव में सुन्दरकांड मानस के अन्य अध्यायों से विशेष इसलिए है कि इसमें श्री राम नहीं अपितु श्री हनुमान के गुणों, यश व हनुमान जी द्वारा भक्तों को ज्ञान, बल व बुद्धि देकर कृपा करने का वर्णन है। श्री हनुमान की स्तुति श्री राम तक ही पहंुचती हैदृतुम्हरे भजन राम को पावै। हनुमन जी की उपासना का कोई नियत समय नहीं है अतः जब भक्ति भाव आए तब हनुमान चालीसा पढ़ें किंतु मंगल और शनिवार श्री हनुमान की विशेष तिथियां हैं। ग्रंथों में आया है कि हनुमान वहां रहते हैं जहां उनका स्मरण हो या श्री राम की भक्ति हो- यत्र यत्र रघुनाथ कीर्तनम, तत्र तत्र कृत मस्तकांजलिम वाष्पवारि परिपूर्ण लोचनम, मारूतिं नमत राक्षसान्तकम॥ अर्थात जहां जहां श्री राम का कीर्तन हो वहां असुरों का संहार करने वाले श्री हनुमान भावपूर्ण रूप से, हाथ जोड़े, नम आखों में उपस्थित रहते हैं।
श्री हनुमान जी वानर स्वरूप में हैं जिसका गूढ़ अर्थ है। इसी स्वरूप से तो अनेक राक्षस भ्रमित हो गए थे। वानर स्वरूप में हनुमान प्रकृति से जुड़े रहते हैं। उनका यही रूप रघुपति को प्रिय हैं इसलिए हनुमान जी को यह रूप भाता है। ज्ञातव्य है कि हनुमान जी के पास अपना स्वरूप बदलने की शक्ति प्राप्त है। तथापि हनुमन जी का परिचय देना सुगम नहीं है, यद्यापि उन्हें रूद्र का ग्यारहवां अवतार माना गया है। (ज.श. निश्चलानन्द स.)। हनुमान जी ब्रहमचारी हैं और चिरंजीवी हैं , वे भक्तों के लिए सदैव उपलब्ध है तथा उन्हें शक्ति प्रदान करते हैं। श्री हनुमान चालीसा को सुंदरकांड का सारांश भी कहा जाता है। तुलसीदास जी ने हनुमानाष्टक (बाल समय रवि भक्षी लियो तब) की रचना भी की है। इसी प्रकार आरती कीजै हनुमान लला की नामक प्रसिद्धि आरती संत रामानन्द की रचना है।
