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मीरा माधव: हरि तुम हरो जन की पीर

हरि! तुम हरो जन की पीर। (टेक)

द्रौपदी की लाज राखी, तुम बढ़ायो चीर॥1॥

भक्त कारण रूप नरहरि, धरयो आप शरीर॥2॥

हिरनकश्यपु मार दीन्हो, धारयो नाहिन धीर॥3॥

बूडते गजराज राखे, कियो बाहर नीर॥4॥

दासि मीरां लाल गिरधर, दुःख जहां तहां पीर॥5॥

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