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इस स्तुति में श्री दुर्गा के 108 नाम दिये गए हैं जिसका वर्णन स्वयं भगवान शिव ने किया है और इस स्तोत्र के बारे में बताया है कि जो व्यक्ति प्रतिदिन श्री दुर्गा अष्टोत्तर शतनाम का पाठ करता है उसके लिए तीनों लोकों में कुछ भी असाध्य नहीं है और वह धन-धान्य, संतति, दंपत्ति, घोड़ा, हाथी (चल संपत्ति), धर्म आदि चार पुरुषार्थ और अन्त में सनातन मुक्ति को प्राप्त करता है। भगवान शंकर पार्वती जी से कहते हैं कि यह ऐसा पाठ है जिसके पारायण या श्रवण से परम साध्वी भगवती दुर्गा प्रसन्न होती हैं। इस स्तोत्र का उतना ही महत्व है जितना श्री विष्णु सहस्त्रनाम या श्री रुद्रम का है।


ॐ सती साध्वी भवप्रीता भवानी भवमोचनी। आर्या दुर्गा जया चाद्या त्रिनेत्र शूलधारिणी॥1॥

पिनाक धारिणी चित्र चण्डघण्टा महातपाः। मनो बुद्धिरहंकारा चित्तरूपा चिता चितिः॥2॥

सर्वमन्त्रमयी सत्ता सत्यानन्द स्वरूपिणी। अनन्ता भाविनी भाव्या भव्याभव्या सदागतिः॥3॥

शाम्भवी देवमाता च चिन्ता रत्नप्रिया सदा। सर्वविद्या दक्षकन्या दक्षयज्ञ विनाशिनी॥4॥

अपर्णा नेकवर्णा च पाटला पाटलावती। पट्टाम्बर परीधाना कलमंजीर रंजिनी॥5॥

अमेयविक्रमा क्रूरा सुन्दरी सुरसुन्दरी। वनदुर्गा च मातंगी मतंगमुनि पूजिता॥6॥

ब्राह्मी माहेश्वरी चैन्द्री कौमारी वैष्णवी तथा। चामुण्डा चौव वाराही लक्ष्मीश्च पुरुषाकृतिः॥7॥

विमलोत्कर्षिणी ज्ञाना क्रिया नित्या च बुद्धिदा। बहुला बहुलप्रेमा सर्ववाहन वाहना॥8॥

निशुम्भशुम्भ हननी महिषासुर मर्दिनी। मधुकैटभहन्त्रा च चण्डमुण्ड विनाशिनी॥9॥

सर्वासुर विनाशा च सर्वदानव घातिनी। सर्वशास्त्रमयी सत्या सर्वास्त्रा धारिणी तथा॥10॥

अनेकशस्त्राहस्ता च अनेकास्त्रास्य धारिणी। कुमारी चौककन्या च कैशोरी युवती यतिः॥11॥

अप्रौढा चौव प्रौढा च वृद्धमाता बलप्रदा। महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला॥12॥

अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्रिस्तपस्विनी। नारायणी भद्रकाली विष्णुमाया जलोदरी॥13॥

शिवदूती कराली च अनन्ता परमेश्वरी। कात्यायनी च सावित्री प्रत्यक्षा ब्रह्म वादिनी॥14॥

 

श्री दुर्गा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र

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