( पंजी. यूके 065014202100596 )
नमो दुर्गतिनाशिन्यै मायायै ते नमो नमः, नमो नमो जगद्धात्र्यै जगत कर्ताये नमो नमः,
नमोऽस्तुते जगन्मात्रे कारणायै नमो नमः, प्रसीद जगतां मातः वाराह्यै ते नमो नमः ।
श्री दुर्गा के ये मंत्र धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष (चारों पुरुषार्थों) को प्रदान करने में सक्षम हैं। ये ऐसे मंत्र हैं जिनके विधिवत पारायण से इच्छित मनोकामना की पूर्ति होती है। दुर्गा सप्तशती में अनेकों दुर्लभ सूक्त आए हैं जो गहन उपासना परक हैं और इनमें से कुछ सूक्तों को सिद्ध मंत्र के रूप में जपा जाता है। इन मंत्रों से सिद्धि प्राप्त हेतु देवी के चित्र या विग्रह के सम्मुख दीपक जलाकर ज्योति की ओर मुख हो या पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके आसन में बैठे हों। इसके पश्चात चारों ओर जल छिड़ककर पवित्रीकरण करें और तीन बार आचमन करें। मंत्र के जपकर्ता के सम्मुख जल भी रखें। मंत्र की सिद्धि हेतु जप करने से पूर्व संकल्प लेना होता है। एक आचमन पानी से संकल्प लें: हे परमेश्वर मैं (अपना नाम बोलें) अमुक कार्य की सिद्धि हेतु यह मंत्र जाप कर रहा हूं/ रही हूं, मुझे सिद्धि प्रदान करें। तदुपरान्त हाथ में लिया हुआ जल भूमि पर छोड़ दें। इसके बाद पुनः तीन बार आचमन करें और ॐ विष्णुवे नमः का उच्चारण करें। इसके पश्चात श्री गणेश का स्मरण करके पंचदेवों का आवाहन करें। जप अभीष्ठ संख्या में हो। यह ऐसा ही है जैसे जितनी चीनी डालोगे उतना मीठा होगा तथा जितना विधि-विधान से करोगे उतनी गहनता आएगी। जप हेतु रुद्राक्ष की माला हो (अन्य बातों हेतु पुरोहित से सलाह लें)। विविध उद्देश्य हेतु प्रयुक्त मंत्र इस प्रकार हैं:
1. ऐश्वर्य, सौभाग्य, आरोग्य, संपदा प्राप्ति एवं शत्रु भय से मुक्ति के लिए
ऐश्वर्य यत्प्रसादेन सौभाग्य-आरोग्य सम्पदः। शत्रु हानि परो मोक्षः स्तुयते सान किं जनै।
2. विघ्न नाश के लिए:
सर्वबाधा प्रशमनं त्रेलोक्य स्याखिलेश्वरी। एवमेव त्याया कार्य मस्माद्वैरि विनाशनम्।
3. आरोग्य एवं सौभाग्य प्राप्ति वाला मंत्र जिसे स्वयं देवी दुर्गा ने देवताओं को दिया है
देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि मे परमं सुखम्। रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।
4. विपत्ति नाश करने के लिए
शरणागतर्दिनार्त परित्राण पारायणे। सर्व स्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोऽतुते।
5. सर्वकल्याण हेतु
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्रयंबके गौरी नारायणि नमोस्तुऽते।
6. बाधा मुक्ति एवं धन-संतति प्राप्ति के लिए
सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धन धान्य सुतान्वितः। मनुष्यों मत्प्रसादेन भविष्यंति न संशय।
7. देवी का ध्यान मंत्र
देवी प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद, प्रसीद मातर्जगतो खिलस्य। प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं, त्वमीश्चरी देवि चराचरस्य।
8. शक्ति प्राप्ति के लिए
सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि। गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते॥
9.रक्षा का मंत्र :
शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके। घण्टास्वनेन नः पाहि चापज्यानिः स्वनेन च॥
10. सर्व कल्याण हेतु (नवरात्रि मंत्र) :
सर्व मंगल मांगल्य शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्रायम्बके गौरी नारायणि नमोस्तुते॥
11. नवरात्रि की प्रतिपदा के दिन घटस्थापना के पश्चात संकल्प लेकर प्रातः स्नान करके दुर्गा की मूर्ति या चित्र की पंचोपचार या दशोपचार या षोड्शोपचार से गंध, पुष्प, धूप, दीप नैवेद्य निवेदित कर पूजा की जाती है और इस मंत्र का जप होता है
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततंनमः। नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम्।
कल्याण हेतु शौर्य की प्रेरणा
गुरू गोविंदसिंह ने श्री दसम ग्रंथ में देवी चंडी एवं चौबीस अवतारों के माध्यम से लोगों में धर्म-युद्ध का उत्साह भी भरा है। चंडी चरित में चंडी दी वार वस्तुतः स्त्री शक्ति को स्थापित करते हुए समाज में स्त्री को उचित सम्मान दिलाने का संकेत भी करती है। देवी के रूप का व्याख्यान गुरू गोविंद सिंह जी इन शब्दों में करते हैं।
पवित्री पुनीता पुराणी परेयं। प्रभी पूरणी पारब्रहमी अजेयं।
अरूपं अनूपं अनामं अठामं। अभीतं अजीतं महां धरम धामं।
‘चंडी चरित’, से उद्धृत आदिशक्ति देवी शिवा की यह अर्चना शुभ कर्म व कल्याण हेतु शौर्य व सामर्थ्य की कामना करती है
देहि सिवा बर मोहि इहै, सुभ करमन ते कबहूं न टरौं।
न डरौं अरि सों जब जाई लरौं, निसचौ करि आपनि जीत करौं॥
अरु सिखहों आपने ही मन को, इह लालच हउ गुन तउ उचरौं।
जब आव की अउध निदान बनै, अति ही रन में तब जूझ मरौं॥
अर्थ- हे परम पुरुष की कल्याणकारी शक्ति ! मुझे यह वरदान दो कि मैं शुभ कर्म करने में न हिचकिचाऊं। रणक्षेत्र में शत्रु से कभी न डरुं और निश्चयपूर्वक युद्ध को अवश्य जीतूं। अपने मन को शिक्षा देने के बहाने मैं हमेशा ही तुम्हारा गुणानुवाद करता रहूं तथा जब मेरा अंतिम समय आ जाय तो मैं युद्धस्थल में धर्म की रक्षा करते हुए प्राणों का त्याग करूं।
